देश के विभाजन पर नेहरूजी के ही दस्तखत हैँ - अरविन्द सिसोदिया
देश के विभाजन पर नेहरूजी के ही दस्तखत हैँ - अरविन्द सिसोदिया
इन दिनों लोकसभा में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सुर्खियों में है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि POK पाकिस्तान में होनें का कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी हैँ। उन्होंने बड़ी स्पष्टता से कहा कि पाकिस्तान से चल रहे युद्ध को रोकना और मामले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना गलत निर्णय थे, जिनके कारण POK पाकिस्तान के कब्जे में रह गया।
इस पर कांग्रेस ने सदन में नेता अधिरंजन अधीर हो गये और नेहरू जी को लेकर बहस करने की चुनौती ड़े डाली। जिसका जबाव भी सबूतों के साथ दिया गया। शाह नें नेहरूजी द्वारा लिखे एक पत्र के द्वारा यह सिद्ध किया कि नेहरूजी नें स्वयं यह माना था कि जम्मू और कश्मीर का मसला संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना गलती रही।
कांग्रेस बेवजह नेहरूजी को लेकर जिद करती है। जबकि यह सर्वविदित है कि नेहरूजी देश हित के मामलों में लगातार विफल रहे हैं।
ब्रिटेन दूसरे विश्व युद्ध में बुरी तरह बर्वाद ही गया था। उसके 50 से अधिक उपनिवेश तब स्वतंत्र किए गये, उनमें से एक भारत भी था। 1947 में भारत के स्वतंत्र होनें में किसी आंदोलन का कोई हाथ नहीं है। ब्रिटेन नें देश को विभाजित कर उन दो व्यक्तरियों के हाथ में सौंपा जो उनके विश्वस्थ थे।
नेहरूजी नें भारत की संविधान सभा जो उस समय सर्वोच्च संस्था थी, की जानकारी में लाये बिना कॉमनवेल्थ देशों के समूह में सम्मिलित होनें के दस्तखत किए, जो क्राउन के प्रति वफादारी का संकल्प था। संविधान सभा में कई सदस्यों नें इस पर नाराजगी जाहिर की तब नेहरूजी नें एक बड़ा वक्तव्य सफाई में दिया था।
अर्थात देश के विभाजन में, जम्मू और कश्मीर से चल रहे युद्ध को एक तरफा रोक कर पाकिस्तान के कब्जे में झोड़ना, तिब्बत के साथ ब्रिटिश काल से चली आरही सन्धि को न करके, उन्हें चीन के पास भेजना, चीन से दोस्ती करना धोखा खाना और युद्ध में जमीन सहित भारी क्षति उठाना।
नेहरू जी की नीतियों की देश नें भारी क़ीमत चुकाई है, जो न जाने कितनी सदियों तक नासूर बनी रहेंगी।
नेहरू के बाद भी कांग्रेस नें राष्ट्रहित के मुद्दे पर राष्ट्रघाती नितियाँ ही रखी और इसका नुकसान अभी तक उठाना पड़ रहा है।
1965 और 1971 के पाक युद्धओं में भारत नें जीत हांसिल की थी, भारत के पास पाकिस्तान का भूभाग कब्जे में था सेना कब्जे में थी, POK वापस लेनें में कोई बाधा ही नहीं थी।किन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी नें POK वापस लिए बिना ही, सेना और क्षेत्र वापस किए जो देश के साथ विश्वासघात था।
भारत की जनता अब - सब जान चुकी है कि नेहरू वंश नें देश को कितने दंश दिए।
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