न्याय के देवता शनिदेव का जीवन परिचय
शनि देव का जीवन परिचय
धर्मग्रंथो के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा तपस्या के लिये प्रस्थान करनें से पूर्व अपनी ही छाया को उसकी जगह सूर्य देव की सेवा के लिये रख कर तपस्या हेतु गई । तब छाया के गर्भ से सूर्य के पुत्र के रूप में शनि देव का जन्म हुआ । जब शनि देव छाया के गर्भ से होनें के कारण वर्ण श्याम के हैं ! शनि के श्यामवर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी संज्ञा का प्रतिरूप छाया पर आरोप लगाया की शनि मेरा पुत्र नहीं हैं ! माना जाता है कि तभी से शनि अपने पिता से शत्रु भाव रखते थे ! शनि देव ने अपनी साधना तपस्या द्वारा शिवजी को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य की भाँति शक्ति प्राप्त की और शिवजी ने शनि देव को वरदान मांगने को कहा, तब शनि देव ने प्रार्थना की कि युगों युगों में मेरी माता छाया की पराजय होती रही हैं, मेरे पिता सूर्य द्वारा अनेक बार अपमानित किया गया हैं ! अतः माता की इच्छा हैं कि मेरा पुत्र अपने पिता से मेरे अपमान का बदला ले और उनसे भी ज्यादा शक्तिशाली बने ! तब भगवान शंकर ने वरदान देते हुए कहा कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा ! मानव तो क्या देवता भी तुम्हरे नाम से भयभीत रहेंगे !
भारतीय संस्कृति में शनि देवता
भारतीय संस्कृति में शनि को सूर्य का पुत्र माना गया है। उनके सम्बन्ध मे अनेक धाराणायें है इसलिये उन्हे मारक, अशुभ और दुःख का कारक ग्रह माना गया है। शनि मोक्ष देने वाला एक मात्र ग्रह है। हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार शनि देव न्याय के देवता हैं। शनि प्राणी सत्ता/प्रकृति में संतुलन बनाए रखते है। वे हर एक प्राणी के साथ कर्म के अनुसार न्याय करते है।
भारतीय संस्कृति के विशाल ऐतिहासिक साहित्य एवं कथाओं में शनि देव के द्वारा दंढ दिये जानें के अनेकानेक वृतांत मिलते हैं।
शनि ग्रह के प्रति अनेक आख्यान पुराणों में प्राप्त होते हैं। शनि देव को सूर्य देव के सबसे बड़े पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी, शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियाँ और इसलिये उन्हे मारक, अशुभ और दुःख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुःख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है। मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्राणी सत्ता / प्रकृति में संतुलन पैदा रखता है और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।
वैदूर्य कांति रमलः, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरतः।
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मजः अव्यतीति मुनि प्रवादः॥
भावार्थ - शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि, महात्मा कहते हैं।
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पौराणिक संदर्भ
शनि के सम्बन्ध मे हमे पुराणों में अनेक आख्यान मिलते हैं। माता के छल के कारण पिता ने उसे शाप दिया। पिता अर्थात सूर्य ने कहा, “ आप क्रूरतापूर्ण दृष्टि देखने वाले मंदगामी ग्रह हो जाये“ यह भी आख्यान मिलता है कि शनि के प्रकोप से ही अपने राज्य को घोर दुर्भिक्ष से बचाने के लिये राजा दशरथ उनसे मुकाबला करने पहुंचे तो उनका पुरुषार्थ देख कर शनि ने उनसे वरदान मांगने के लिये कहा। राजा दशरथ ने विधिवत स्तुति कर उसे प्रसन्न किया। पद्म पुराण में इस प्रसंग का सविस्तार वर्णन है। ब्रह्मवैवर्त पुराण में शनि ने जगत जननी पार्वती को बताया है कि मैं सौ जन्मो तक जातक की करनी का फ़ल भुगतान करता हूँ। एक बार जब विष्णुप्रिया लक्ष्मी ने शनि से पूछा कि तुम क्यों जातकों को धन हानि करते हो, क्यों सभी तुम्हारे प्रभाव से प्रताडित रहते हैं। तो शनि महाराज ने उत्तर दिया , “मातेश्वरी, उसमे मेरा कोई दोष नही है, परमपिता परमात्मा ने मुझे तीनो लोकों का न्यायाधीश नियुक्त किया हुआ है। इसलिये जो भी तीनो लोकों के अंदर अन्याय करता है। उसे दंड देना मेरा काम है“ ।
एक अन्य आख्यान है कि किस प्रकार से ऋषि अगस्त ने जब शनि देव से प्रार्थना की थी, तो उन्होने राक्षसों से उनको मुक्ति दिलवाई थी। जिस किसी ने भी अन्याय किया, उनको ही उन्होने दंड दिया, चाहे वह भगवान शिव की अर्धांगिनी सती रही हों। जिन्होने सीता का रूप रखने के बाद बाबा भोले नाथ से झूठ बोलकर अपनी सफ़ाई दी और परिणाम में उनको अपने ही पिता की यज्ञ में हवन कुंड मे जल कर मरने के लिये शनि देव ने विवश कर दिया । अथवा राजा हरिश्चन्द्र रहे हों, जिनके दान देने के अभिमान के कारण सप्तनीक बाजार मे बिकना पडा और श्मशान की रखवाली तक करनी पडी, या राजा नल और दमयन्ती को ही ले लीजिये, जिनके तुच्छ पापों की सजा के लिये उन्हे दर दर का होकर भटकना पडा, और भूनी हुई मछलियां तक पानी मै तैर कर भाग गईं, फ़िर साधारण मनुष्य के द्वारा जो भी मनसा, वाचा, कर्मणा, पाप कर दिया जाता है वह चाहे जाने मे किया जाय या अन्जाने में, उसे भुगतना तो पडेगा ही।
मत्स्य पुराण में महात्मा शनि देव का शरीर इन्द्र कांति की नीलमणि जैसी है, वे गिद्ध पर सवार है, हाथ मे धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है,शनि देव का विकराल रूप भयावह भी है।शनि पापियों के लिये हमेशा ही संहारक हैं। पश्चिम के साहित्य मे भी अनेक आख्यान मिलते हैं,शनि देव के अनेक मन्दिर हैं,भारत में भी शनि देव के अनेक मन्दिर हैं, जैसे शिंगणापुर, वृंदावन के कोकिला वन, ग्वालियर के शनिश्चराजी, दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनि के मन्दिर हैं।
फ़लित ज्योतिष शास्त्रो में शनि अनेक नामों से सम्बोधित है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर इत्यादि। पुष्य, अनुराधा और उत्तरा भाद्रपद शनि के नक्षत्र है तथा दो राशियों मकर और कुम्भ के वे स्वामी है। वें सूर्य, चन्द्र व मंगल को शत्रु एवं बुध व शुक्र को अपना मित्र मानते है तथा गुरु के प्रति सम भाव रखते है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार, कंप, हड्डी व दंत रोगों का कारक माना गया है। शनि के सात वाहन हैं - हाथी, घोड़ा, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा और गिद्ध है। उनकी पत्नी नीला देवी है।
भारत के प्रायः हर शहर में शनि के मंदिर स्थापित है। इनमें महाराष्ट्र प्रांत के सीग्नापुर का शनि मंदिर सुप्रसिद्ध है। शनि की पूजा के लिए शनिवार शुभ दिन है।
खगोलीय विवरण
नवग्रहों के कक्ष क्रम में शनि सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर अट्ठासी करोड, इकसठ लाख मील दूर है। पृथ्वी से शनि की दूरी इकहत्तर करोड, इकत्तीस लाख, तियालीस हजार मील दूर है। शनि का व्यास पचत्तर हजार एक सौ मील है, यह छः मील प्रति सेकेण्ड की गति से २१.५ वर्ष में अपनी कक्षा मे सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।शनि धरातल का तापमान २४० फ़ोरनहाइट है। शनि के चारो ओर सात वलय हैं,शनि के १५ चन्द्रमा है। जिनका प्रत्येक का व्यास पृथ्वी से काफ़ी अधिक है।
ज्योतिष में शनि
फ़लित ज्योतिष के शास्त्रो में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर और छायापुत्र आदि.शनि के नक्षत्र हैं,पुष्य,अनुराधा, और उत्तराभाद्रपद.यह दो राशियों मकर, और कुम्भ का स्वामी है।तुला राशि में २० अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के २० अंश प परमनीच है।नीलम शनि का रत्न है।शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है।शनि सूर्य,चन्द्र,मंगल का शत्रु,बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार,कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है। साढ़े साती दोष गणना यंत्र से आप जान सकते हैं कि शनि की साढ़े साती आपको कब प्रभावित करेगी।
वैश्विक संस्कृति में
ज्योतिष में शनि पारंपरिक रूप से एक्वारियस तथा कैप्रिकॉन के सत्तारूढ़ ग्रह है। दिवस सैटर डे / शनिवार शनि ग्रह पर नामित है। जो कृषि के रोमन देवता सैटर्न से प्राप्त हुआ है ( यूनानी देवता क्रोनस से जुड़ा हुआ है )।
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