कुछ तो ऐसा है जिसे ममता बैनर्जी सरकार छुपा रहीं है - अरविन्द सिसोदिया Kolkata doctor's rape and murder

कुछ तो ऐसा है जिसे ममता बैनर्जी सरकार छुपा रहीं है - अरविन्द सिसोदिया

Kolkata doctor's rape and murder has shocked India, says top court

बंगाल में डॉक्टर बेटी के साथ हुईं सामूहिक बलात्कार और प्रथम दृष्टया सबक सिखाओ हत्याकांड निश्चित ही गंभीरतम घटना है और इसकी सच्चाई को बंगाल सरकार पूरी ताकत लगा कर छुपा दिया है। सही जांच तक पहुंचना इसलिए मुश्किल हो गया है कि राज्य सरकार नें ज्यादातर सबूतों को नष्ट करने का कार्य किया। इसलिए अब प्रकरण बेहद पेचीदा हो गया है। जाँच एजेंसीयों को चुनौतीपूर्ण हो गया है।

यह सच है कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रकरण को बहुत ही गंभीरता से लिया है किन्तु सबूतों की जरूरत तो आगे केस चलाने के लिए, सजा दिलाने के लिए चाहिए ही।

इस प्रकरण को जिस तरह दबाया गया, उससे प्रतीत होता है कि कुछ इस तरह का रहस्य जरूर रहा है जो सामने आनें पर ममता बैनर्जी की बंगाल सरकार को अथवा उनके किसी बड़े राजनेता को बड़ा नुकसान पहुँचा सकता था । इसलिए सच तक जाँच पहुंचने ही नहीं दी गई,  पहले आत्महत्या करार देनें की कोशिश हुईं, डेथ बड़ी को छुपाया गया, माता पिता को ही नहीं देखने दिया गया, पुलिस रिपोर्ट तक नहीं लिखी, जब डेथ बाड़ी  सौंपना जरूरी हो गया,तब बाड़ी सोंपी गई और रिपोर्ट लिखी गई और दाह संस्कार भी तुरत फुरत करवाया गया।

सबसे बड़ी बात पीड़िता डेली डायरी लिखती थी जो बहुत बड़ा सबूत बनती, उसके जरूरी पन्ने फाड़ कर गायब कर लिए गये हैँ। वहीं कथित तौर पर उसने विभाग के उच्च अधिकारीयों को कोई शिकायत दी थी, वह क्या है क्या शिकायत भी गायब कर दी गई। यहाँ प्रश्न यही है की बंगाल की जनता ने मत आपको सरकार चलाने न्याय की रक्षा करने दिया है, अपराध करने या अपराधियों से सांठ गांठ रखने को नहीं दिया है।

बंगाल के राज्यपाल नें केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाक़ात की है वहीं बंगाल सरकार नें आवाज दबाने के लिए कुछ लोगों व जनप्रतिनिधियों को पुलिस से नोटिस दिलवाये हैँ। 

जासूसी के द्वारा सत्य तक पहुंचने का पहला सिद्धांत ही शक करो और फिर उनका पीछा करो तभी सत्य तक पहुंच सकोगे। इसलिए वहाँ के जनप्रतिनिधियों को जो समझ में आरहा है उसे उन्हें व्यक्त करना, सत्य तक पहुँचने में सहायक होगा, इसे अफवाह फैलाना नहीं कहा जाता। किन्तु बंगाल सरकार सब के मुंह पर टेप चिपकाना चाहती है।

मुख्य सबाल यही है कि कानून व्यवस्था का संवेधानिक और नैतिक कर्तव्य जिस सरकार पर हो वही सरकार सबूत मिटा कर अपराधी को बचा रही हो तो लोकतंत्र कहां बचा ? यह तो जंगल राज से बदतर विभत्स राज हो गया! इस तरह का कृत्य बंगाल की ममता बैनर्जी सरकार को सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं देती है। इसलिए ममता सरकार से त्यागपत्र की मांग उचित है और यही पीड़िता को प्राथमिक  न्याय है।

दो बातें दबी जुबान उठ रहीं हैँ जिनका मीडिया में इशारा हो रहा है पहली बात घटना के समय के प्रिंसिपल का व्यवहार और पूर्व रिकार्ड जो उनके आपराधिक चरित्र के लोगों से निकटता और उनका उपयोग दर्शाता है, वहीं उसका राज्य सरकार में कोई बड़ा संरक्षक होनें के संकेत मिलते हैँ। जिससे वह निरंकुश था। दूसरा सबूत सामान्य घटनाक्रम  में कोई नहीं मिटाता, बल्कि राज्य सरकार पर कोई बड़ा संकट आ सकता है या कोई बहुत बड़ा आरोप लग सकता है, तभी उससे बचानें के क्रम में इस तरह का होता है। अर्थात कुछ बड़ा तो है।

मीडिया में जो बात उठ रही है वह यही है कि मानव अंगों की तस्करी के खुलासे को रोकने और कोई दूसरा मुँह न खोले इसलिए इस तरह की क्रूरता को अंजाम दिया गया है ।

इस घटनाक्रम से यह संकेत जरूर मिलता है कि इस पूरे गोरखधंधे से सत्तारुड़ दल का कोई बहुत बड़ा नेता जरूर जुड़ा है जिस तक जाँच की पहुँच राज्य सरकार रोक रही है।

देखना यही है कि सच सामने आपाता है या झुपा रहता है।

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