नेताजी सुभाष की मृत्यु का रहस्य,अर्न्तराष्ट्रीय संम्बंध बिगडनें के डर से गायब रहेंगे - अरविन्द सिसौदिया

 


नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का रहस्य,अर्न्तराष्ट्रीय संम्बंध बिगडनें के डर से गायब रहेंगे - अरविन्द सिसौदिया

यह एक कटु सत्य है कि महान स्वतंत्रता सेनानी और भारत की आजादी के महान पुरोधा नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का निधन 18 अगस्त 1945 को कथित विमान दुर्घटना में नहीं हुआ था । यह एक कूटनीतिक प्रयास भर था जिसका उद्देश्य नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से तत्कालीन विजेता ब्रिटेन-अमेरिका समूह का ध्यान हटाना था। क्यों कि ताईवान सरकार नें बहुत स्पष्टता से कहा है कि 18 अगस्त 1945 को काई भी विमान  दुर्घटना उनके देश में नहीं हुई है।

उस समय कई तरह की परिस्थितियां थीं जो नेताजी से विरूद्ध बन गईं थी -

1- नेताजी को ब्रिटिश सरकार नें अपना शत्रु घोषित किया हुआ था और उन्हे समाप्त कर दिये जानें के आदेश थे। जापान पर अमरीकी परमाणु हमले के बाद जापान - जर्मनी समूह पूरी तरह परास्त होकर अमेरिकी ताकतों के पेरों में पडा हुआ था। इसलिये कोई भी नेताजी सुभाष के लिये संरक्षक बनने तैयार नहीं था। 

2- नेताजी भी जानते थे कि यदि वे जापान - जर्मनी समूह के पास पहुंचते हैं तो ब्रिटेन उन्हे मांग लेगा और जापान को उन्हे सौंपना ही पडेगा । इसलिये नेताजी किसी तीसरी ताकत के पास गये जो ब्रिटेन - अमेरिका समूह से नहीं डरती हो। उस समय इस तरह की ताकत एक मात्र सोवियत संघ था। 

3- यह लगातार माना जा रहा है कि नेताजी ने सावियत संघ में शरण लेना उचित समझा जो कि उल्टा दाव साबित हुआ क्यों कि सोवियत संघ साम्यवादी विचारों के पोषक रहे पंण्डित जवाहरलाल नेहरू जी को किसी भी मुसीबत में नहीं डालना चाहता था। आजादी के बाद जो सैन्य गुट बने उनमें भी भारत सोवियत संघ के खेमें में था। इसी कारण संभवतः नेताजी को नजरबंद कर सोबियत संघ की किसी जेल में रखा गया होगा और वहीं उनकी मृत्यु हुई होगी।

4- राजनैतिक रूप से तब की परिस्थितियों में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस यदी भारत आ जाते तो वे जवाहरलाल नेहरू से अधिक लोकप्रिय व पराक्रमी नेता के रूप में स्विकार होते और वे नेहरूजी को राजनीति से बाहर कर देते , उसके लिये उस समय नेहरूजी को ब्रिटेन ने आगाह भी किया था। इसलिये नेहरूजी की मजबूरी भी थी कि नेताजी को सोबियत संघ में ही रहने दिया जाये।

5- नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जब अंग्रेजों की नजरबंदी से गायब होकर भारत से बाहर गये तब वे जर्मनी में हिटलर के पास ही पहुंचे थे। तत्कालीन सोवियत संघ भी हिटलर विरोधी था। इसलिये संभवतः शत्रु के मित्र सोवियत संघ में नेताजी को माना गया और उन्हे संभतः नजरबंद किया गया। नेताजी के पक्ष में सोवियत संघ में कुछ भी नहीं रहा होगा, इस तरह का अनुमान लगाया जा सकता है। 

6- आजादी के बाद लम्बे समय तक यथा लगातार 40 साल कांग्रेस सरकार में रही और इस दौरान लगातार भारत सोबियत संघ के साथ रहा, इस अवधी में ही कभी नेताजी का निधन हो गया होगा। इसलिये इसके बाद की परिस्थिती में कोई भी देश नहीं चाहेगा कि कुछ इस तरह का उजागर हो जिससे देशों की मित्रता एवं संम्बंधों पर प्रश्न उठें और कुछ कुप्रचार सामनें आये।

अर्थात अब यह मान लेना चाहिये कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस हमारे बीच नहीं हैं उनके साथ क्या हुआ उनका निधन कब और कहां हुआ यह रहस्य फिलहाल अर्न्तराष्ट्रीय संम्बंध बिगडनें के डर से उजागर नहीं होगें । कभी कोई स्थिती - परिस्थिती बनीं तो सच सामनें आ भी सकता है। अन्यथा वर्तमान स्थिती में सच उजागर होता नजर नहीं आता । 

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The mystery of Netaji Subhash Chandra Bose's death, he will remain hidden for fear of spoiling international relations - Arvind Sisodia


It is a bitter truth that the great freedom fighter and great pioneer of India's independence, Netaji Subhash Chandra Bose, did not die in the alleged plane crash on 18 August 1945. It was just a diplomatic effort aimed at diverting the attention of the then victorious Britain-America group from Netaji Subhash Chandra Bose. Because the Taiwan government has very clearly stated that no plane crash took place in their country on 18 August 1945.


At that time there were many circumstances that went against Netaji -


1- Netaji was declared an enemy by the British government and there were orders to eliminate him. After the American nuclear attack on Japan, the Japan-Germany group was completely defeated and was at the feet of the American forces. Therefore, no one was ready to become a protector for Netaji Subhash.


2- Netaji also knew that if he reaches the Japan-Germany group, Britain will demand him and Japan will have to hand him over. Therefore, Netaji went to a third power which was not afraid of the Britain-America group. At that time, the only such power was the Soviet Union.


3- It is being continuously believed that Netaji thought it appropriate to take refuge in the Soviet Union, which proved to be a wrong move because the Soviet Union did not want to put Pandit Jawaharlal Nehru, who was a supporter of communist ideas, in any trouble. Even in the military groups that were formed after independence, India was in the territory of the Soviet Union. For this reason, Netaji must have been kept under house arrest in some prison of the Soviet Union and he must have died there.


4- Politically, if Netaji Subhash Chandra Bose had come to India in the then circumstances, he would have been accepted as a more popular and powerful leader than Jawaharlal Nehru and he would have ousted Nehru from politics, for which Britain had also warned Nehru at that time. Therefore, Nehru was also compelled to let Netaji stay in the Soviet Union.

5- When Netaji Subhash Chandra Bose escaped from the house arrest of the British and went out of India, he reached Hitler in Germany. The Soviet Union of that time was also against Hitler. Therefore, Netaji was probably considered a friend of the enemy in the Soviet Union and he was probably put under house arrest. It can be assumed that there must not have been anything in favor of Netaji in the Soviet Union.

6- After independence, for a long time, i.e. 40 years, Congress was in power and during this period, India was continuously with the Soviet Union, during this period Netaji must have died. Therefore, in the circumstances after this, no country would want that something like this should be exposed which raises questions on the friendship and relations of the countries and some bad propaganda comes to the fore.


That is, now it should be accepted that Netaji Subhash Chandra Bose is no longer among us, what happened to him, when and where did he die, these mysteries will not be exposed for the time being due to the fear of spoiling international relations. If a situation arises, the truth may come out. Otherwise, in the present situation, the truth does not seem to be exposed.

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