हम क्यों गुलाम हुये - अटल बिहारी वाजपेयी

 Atal Bihari Vajpayee: When Atal Bihari Vajpayee was happy at his defeat and  save jyotiraditya scindia family: जब अपनी हार पर खुश हुए थे अटल बिहारी  वाजपेयी - Navbharat Times

 मत भूलो, पग-पग पर बलिदानों की गंगा बहाई है..!


- अरविन्द सिसौदिया
    कहने को कह दिया जाता है कि भारत बहुत ही शांतिप्रिय ढंग से आजाद हो गया और अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा कहीं कोई खून नहीं बहा, कहीं कोई हिंसा नही हुई।
 
“देदी हमें आजादी बिना खडग ढाल सावरमती के संत तूने कर दिया कमाल”
मगर सच यह है कि ये बात सिर्फ गीत गाने और झूठ फैलाने से अधिक कुछ नहीं है।


20 लाख से अधिक निर्दोष नागरिकों के खून से हमारी स्वतंत्रता के हाथ सनें हे। 1.5 करोड़ से अधिक लोगों के घर छूटे । पाकिस्तान बनें भारत से 75 लाख लोग भारत आये और लगभग इतने ही भारत से पाकिस्तान गये । आंकडों के कई गुणा भी हो सकती है असलियत ।
    मगर सच बहुत खौफनाक है, विश्व की जनसंख्या सम्बंधी सबसे बडी अदला बदली हुई। जो लोग इस विभाजन से प्रभावित हुये, उनकी जायदादें चलीं गईं, परिवार के सदस्य मारे गये, महिलाओं की इज्जत लूट ली गई, दुनिया में कहीं ऐसी मिसाल नहीं होगी कि लाशों से भरी रेल गाडियां आई हों! और सरकार खामोश सब देखती रही हो। मगर हमारी आजादी ऐसी ही थी, जिसमें नेहरूजी के हाथ में सत्ता थी और देशवासियों के हाथ में मायूसी, विक्षोभ और नफरत थी। सरकार की कायरता के विरू( हर कोई आक्रोशित था। कुल मिला कर आजादी के लिये, हर कदम पर कीमत चुकाई गई है! वह भी खून से और जान से ! बलिदान से! इसलिये यह अमूल्य है।
    शहादत तो शहादत होती है, चाहे वह दृश्मन के हमले का मुकाबला करते हुये हुई हो या उसके राज्य के विरूद्ध विद्रोह करते हुई हो। चाहे सीमा की रक्षा करते हुये हुई हो या राष्ट्रहित की किसी भी अन्य बात के लिये हुई हो! इस महान हिन्दुत्व के वीर सपूतों की शहादत को नमन् करने के इस अवसर पर, यदि प्रसिद्ध कवि गीतकार पंडित प्रदीप की यह पंक्तियां यद्धपि चीन युद्ध के समय भारतीय सैनिको के सम्मान में हैं मगर स्वतंत्रता के लिये जिन्हे मौत अंकीकृत करनी पढी वे भी शहीद से कम नहीं हैं। उनके लिये यह पंक्तियां न दोहराई जायें तो अभिव्यक्ति अधूरी ही रहती हैः

ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी,
जो शहीद हुये हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी।

    अभी कुछ दसक पूर्व की ही बात है, देश ने स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगांठ मनाई थी, इस हेतु संसद का एक विशेष अधिवेशन हुआ था। जो 26 अगस्त से 1 सितम्बर 1997 तक चला था। प्रधानमंत्री थे इन्द्र कुमार गुजराल और विपक्ष के नेता थे अटलबिहारी वाजपेयी। इस महान अधिवेशन में तत्कालीन भारत की सभी परिस्थितियों पर महत्त्वपूर्ण चर्चा, राजनीति से ऊपर उठकर हुई थी। उसके कुछ चुनिंदा अंश जहां हम भी पढते हैंः
    विपक्ष के नेता वाजपेयी ने ‘‘देश में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थिति, आर्थिक स्थिति, आधारभूत ढ़ांचे की स्थिति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षैत्र में हमारी उपलब्धियों और क्षमता तथा मानव विकास की स्थिति के बारे में प्रस्ताव’’ पेश किया और अपने सम्बोधन के प्रारम्भ में चेताया।

अटल बिहारी वाजपेयीः हम क्यों गुलाम हुये
        50 वर्ष बीत गये। वक्त जाते देर नहीं लगती, आधी सदी गुजर गई लेकिन आधी सदी हमारे सामने है। नई शताब्दी हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है, नया युग आने वाला है और हम जब 50 साल का लेखा जोखा लेने के लिये बैठे हैं, स्वाभाविक है कि हमारा ध्यान इस बात की ओर जाए कि आखिर हमने जो उपलब्धियां प्राप्त की हैं, उस सब के बावजूद देश अपने सारे सपनों को पूरा क्यों नहीं कर सका है?

    आज जब हम स्वाधीनता को शाश्वत और अमर बनाने का संकल्प ले रहे हैं, हमारे मनों में बार-बार यह प्रश्न गूंजता है कि आखिर हम पराधीन क्यों हुए। 50 साल का समय कोई अधिक लम्बा समय नहीं होता। व्यक्ति के जीवन में 50 साल लम्बा समय हो सकता है, मगर भारत जैसे प्राचीन राष्ट्र के जीवन में नहीं। हमारी सभ्यता और संस्कृति पांच हजार साल से भी अधिक पुरानी है। सचमुच में किसी नये राष्ट्र का जन्म नहीं हो रहा है।

पराधीनता के कारणों के विचार करें
    जब हम पराधीनता के कारणों पर विचार करते हैं, तब दिखाई देता है कि हम इसलिये पराधीन नहीं थे कि हमारे पास धन नहीं था, दौलत नहीं थी। भारत सोने की चिड़िया थी, इसीलिये आक्रमण की शिकार थी। क्लाइव ने 1757 में विभाजित बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद के बारे में कहा था। मैं उसका उल्लेख करना चाहता हूं।
    ‘‘यह शहर लंदन की भांति विस्तृत, घनी आबादी वाला है। परन्तु मुर्शिदाबाद में लंदन से भी अधिक वैभवशाली व्यक्ति थे।’’
    इस संबंध में रजनी पामदत्त का जो कथन है, वह भी उत करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहाः
    ‘‘सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिटेन भारत को कोई ऐसी चीज देने की स्थिति में नहीं था जो भारत के पास नहीं थी। चाहे वह प्रोडक्ट्स की क्वालिटी की दृष्टि से हो और चाहे वह टैक्नोलॉजी स्टैंडर्ड की दृष्टि से हो।’’
    200 साल में देश की स्थिति क्या हो गई, हम सब उससे परिचित हैं। स्पष्टतः हम इसलिए नहीं हारे कि दौलत नहीं थी, इसलिए भी नहीं हारे कि हमारे पास सेना नहीं थी, पराक्रम नहीं था, पौरूष नहीं था। पानीपत के मैदान में हमारे पास सेना अधिक थी, हम हार गए, स्वाधीनता खो बैठे।
    प्लासी में तो लड़ाई हुई ही नहीं, विश्वासघात हुआ। प्लासी के मैदान में जब लड़ाई चल रही थी, तो लड़ने वालों से ज्यादा लोग प्लासी के मैदान से बाहर यह देख रहे थे कि निर्णय क्या होता है। मानो यहां कोई तमाशा हो रहा था। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है। हमारी सभ्यता संस्कृति है.....! लेकिन हम एक सार्वभौम सत्ता का निर्माण नहीं कर सके, हम भारत को एक संगठित राजशक्ति में नहीं बदल सके, एक राज्य का रूप नहीं दे सके। देश बंटा रहा, टुकड़ों में, राजों में रजवाड़ों में। वह अपने-अपने वातावरण में खोये रहे और हम परास्त हुए, पराधीन हुए।
    शताब्दियों बाद लद्दाख से लेकर अंडमान निकोबार तक देश की सारी भूमि, एक झण्डे के नीचे आई है। भारतीय गणराज्य अपनी सम्पूर्ण गौरव-गरिमा के साथ खड़ा है, यह अभिमान की बात है। यह जिम्मेवारी की बात भी है। गणराज्य की रक्षा होनी चाहिये, गणराज्य मजबूत हो, समृ( हो और ऐसी समृ(ि हो जिसमें सबको हिस्सा मिले। सामाजिक समता हो, समरसता हो। आपने उल्लेख किया कि यह देश अंतर्विरोधों से भरा हुआ है मगर इस देश में अंतर्विरोधों के बीच में सामंजस्य और सौमनस्य पैदा करने की अद्भुत क्षमता है, अद्भुत शक्ति है।
    कितनी विविधता है। भविष्यवाणियां हुई थीं कि भारत एक नहीं रहेगा। 500 रियासतों में बंटा था। मातम के मसीहा घोषणायें कर रहे थे कि अंग्रेजों ने एक विभाजन किया है, दूसरा विभाजन स्वयं करेंगे। उन भविष्यवाणियों पर पानी फिर गया। हम एक गणराज्य के रूप में खड़े हैं।
    अटल जी ने पराधीनता के कारणों की ओर इशारा करते हुए गणराज्य की रक्षा की ओर संकेत किया था। जब वे प्रधानमंत्री बने और सदन में बहुमत प्राप्त किया तो उन्होंने पहला सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य किया देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न बनाया,तब सम्पूर्ण विश्व ने भारत को 50 साल बाद पहचाना और उसे सम्मान देता आरम्भ किया। आज की न्यूक्लियर डील भी इसी का कारण और परिणाम है।’’

आजाद हिन्द फौजः वाह सपूतों वाह
    4 फरवरी 1946 को आजाद हिन्द फौज के नजरबंद/गिरफ्तार अधिकारियों का मुकदमा छोड़ देने हेतु ‘गवर्नर जनरल इन काउंसिल’ से अपील करने के लिए केन्द्रीय विधानसभा द्वारा संकल्प रखा गया, जिसकी चर्चा प्रारम्भ करते हुए पंडित गोविन्द मालवीय ने कहा था ‘‘...यदि मुकदमे अभी चलते हैं तो इन्हें भारत में ही चलाया जाएगा। इनसे भारत के लोग प्रभावित हो रहे हैं, अतः इस मामले में भारत के दृष्टिकोण पर सबसे पहले विचार होना चाहिए।
    महोदय, भारत की दृष्टि में आजाद हिन्द फौज के ये सैनिक तथा अधिकारी ‘हीरो’ बन गए हैं। क्या इससे आजाद हिन्द फौज को इस देश के कोने-कोने से जो प्रशंसा, प्रेम, सम्मान, विशाल जनसमर्थन और आदर मिला है, इससे पहले कभी मिला था? यह अभूतपूर्व है, इस मामले में भारत का ऐसा दृष्टिकोण है। आप इससे किस प्रकार आंखें मूंद लेंगे?’’
    शरतचन्द्र बोस ने सदन में ललकारते हुए कहा था ‘‘आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों एवं व्यक्तियों ने अपने उदाहरण से बता दिया कि वे पुराने चले आ रहे हमले को और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकते। दो सौ वर्षों से चले आ रहे पुराने हमले से देश को आजाद कराने के लिये उन्होंने देशवासियों को खड़े होने का आव्हान किया है।’’अर्थात उस समय के हीरो गांधी, नेहरू, जिन्ना या पटेल नहीं थे तब देश के राष्ट्रीय नायक थे मेजर जनरल शाहनवाज, कर्नल जी.एस. ढ़िल्लो, कर्नल ओ.पी. सहगल और केप्टन श्रीमती लक्ष्मी सहगल..!
स्वतंत्रता की ओर अंतिम कदम
    द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1942 में प्रारम्भ किये गये, भारत छोड़ो आन्दोलन से उठे ज्वार से क्रांतीकारी घटनाओं में वृद्धी हुई, जिसने ब्रिटिश शासन को घातक क्षति पहुंचाई। विश्वयुद्ध में टूट चुके, )णी हो चुके, ब्रिटिश शासन के लिए आजाद हिन्द सेना की गिरफ्तारी गले की हड्डी बन गई थी। फरवरी 1946 में आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार सैनिकों एवं अधिकारियों पर मुकदमे चलाये जाने के विरोध में ब्रिटिश सरकार में कार्यरत भारतीय नौसैनिकों एवं नाविकों ने हड़ताल कर दी, जो सेना के अन्य क्षैत्रों में भी फैल गई और उसके कारण भारत में ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों और सैनिकों को गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया। जिससे ब्रिटिश सरकार भयभीत हो गई और वह तुरंत ही भारत छोड़ने के प्रयत्न में जुट गई।
    इस विद्रोह में भारतीय नौसेना के बम्बई बंदरगाह पर खड़े 20 युद्धपोतों के 20,000 सैनिक और नाविक हड़ताल में शामिल हो गये थे। और बाद में यह हड़ताल दिल्ली और थाने की बैरकों में फैल गई। शीघ्र ही कराची, कलकत्ता और विशाखापत्तनम के बंदरगाहों पर स्थित युद्धपोतों के सैनिक और नाविक भी इस हड़ताल में सम्मिलित हो गये।  बम्बई की फैक्ट्रियों में कार्यरत 2लाख से अधिक श्रमिकों ने भी इस हड़ताल के समर्थन में काम बंद कर दिया। बहुत बड़ा और व्यापक आक्रोश पूरे देश में व्याप्त था।
    आजाद हिन्द फौज के गिरफ्तार अधिकारियों को देश में जो मान-सम्मान मिल रहा था, उससे कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता भी भयभीत थे और वे भी चाहते थे कि जो कुछ भी हो, वह तुरत फुरत में हो जाये। कहीं आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों पर जनता का विश्वास बढ़ गया, तो हम पर से विश्वास खत्म हो जायेगा। कुल मिलाकर यह विभाजन और तुरत-फुरत सत्ता हस्तांतरण, एक दोहरा-तिहरा षडयंत्र था जिसमें सबके अपने-अपने हित थे। इस आन्दोलन के विरूद्ध की गई बर्बर पुलिस कार्रवाईयों में 1700 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई। इसी आन्दोलन ने वास्तविक तौर पर अंग्रेजों के बिस्तर गोल कर दिये थे।

सरदार सुरजीत सिंह बरनाला
    हमें आजाद हुए 50 साल -1997 में  हो गए हैं। यह जो हमें किताब मिली है,...., लेकिन इसमें महज तीन लाईनें लिखी गई हैं। भारत को विदेशी शासन से स्वतंत्रता अहिंसा की लड़ाई के द्वारा मिली। इतना ही जिक्र करके छोड़ दिया। इसमें उन कुर्बानियों का जिक्र नहीं है, जो लोगों ने आजादी के लिए दी थी। बहुत-बहुत लोग शहीद हो गए थे। आज सुषमा स्वराज बोल रही थीं और कह रही थीं कि अगर किसी विद्यार्थी से यह पूछा जाए कि वह दस उन आदमियों का नाम ले, जिन्होंने कुर्बानी दी तो वह नहीं ले सकेगा। वह सही बात कह रही थीं। इसका ज्ञान कम होता जा रहा है।
    ...मैं इस बात को गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि जिन लोगों ने आजादी हासिल करने के लिए कुर्बानियां दी हैं, उनका थोड़ा बहुत जिक्र आते रहना चाहिए। जो आंकड़े मिलते हैं, उनसे ऐसा लगता है कि 121 लोगों को फांसी दी गई है। इसका मतलब है, उन्होंने देश के लिए कुछ किया होगा, जिसकी वजह से उन पर मुकदमे चलाए गए और उनको फांसी की सजा हुई। मुझे इस बात को कहते हुए गर्व होता है कि उन लोगों में से 87 लोग पंजाब के थे, सिख थे।
    ...1200 लोगों को उम्रकैद हुई। उम्रकैद बहुत लम्बी होती है, सारी उम्र गुजर जाती है। लोगों को अण्डमान की सैल्यूलर जैल में बंद करने का तो एक इतिहास बन गया है। 1200 लोगों को उम्रकैद हुई और उनमें से भी 76 प्रतिशत लोग पंजाब के थे, सिख लोग थे।
    ....देश में अंग्रेजों के खिलाफ एक लहर नॉन कॉपरेशन की चली थी, जिसको कूका मूवमेंट नामधारी कहते थे। नामधारी मूवमेंट चला और 80 नामधारी, तोपों के आगे खड़े करके उड़ा दिए गए। ऐसी कुर्बानियां हुई हैं, जिसका इतिहास में जि क्र होना चाहिए था ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को पता चल सके कि देश को आजादी ऐसे ही नहीं मिल गई है।
    हमने नॉन वॉयलेंट स्ट्रगल चलाई थी और उसकी वजह से झट से अंग्रेज चले गए और हमे आजादी मिल गई, ऐसी बात नहीं है।
    .... उस जहाज का नाम कामागाटा था। पंजाब के लोग जापानी जहाज को ले गए। वह जहाज जब कनाड़ा पहुंचा तो उनको वहां उतरने नहीं दिया गया। वे वापस आये और कलकत्ता के नजदीक बजबज घाट पर उतरे तो अंग्रेजों की गोलियों के शिकार हो गए। इसमें भी 37 आदमी जो सारे पंजाब के थे, मारे गए। बंगाल में जो शहादत हुई, वह भी उन्होंने की। जलियांवाला बाग घटना को तो देश के लोग जानते हैं। वह एक इतनी बड़ी घटना थी कि 1919 के बाद फिर देश में आजादी के लिये बहुत बड़ी लहर चली।

    इसके साथ ही लोग अकाली मोर्चे में चले गए। 400 लोग अकाली मोर्चें में शहीद हो गए और जेलों में तो हजारों लोग गए थे। देश को आजाद कराने में बहुत बड़ी कुर्बानियां दी गई हैं। 400 लोगों के करीब शहीद हुए, जिसका जिक्र महात्मा गांधी ने किया था और कहा था ‘‘आजादी की पहली लड़ाई जीत ली गई’’ इसे महात्मा गांधी ने खुद लिखा और बधाई दी थी।

मुलायम सिंह यादव ;तत्कालीन रक्षा मंत्री
    ‘‘... लेकिन आज हिन्दुस्तान के पड़ौसी देशां के आसपास जो गतिविधियां  हैं, उनको देखते हुए हमें अपनी सेना को मजबूत करना पड़ेगा। आपको बहुत बड़ा अनुभव है कि अगर विदेश नीति को आत्मनिर्भर रखना है, किसी विदेशी शक्ति के दबाव में नहीं आना है, तो हमें अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करना पड़ेगा। सैन्य शक्ति मजबूत होगी तो देश का विकास होगा और फिर कोई कश्मीर में दखल नहीं देगा।
    ...अगर ये पांच देश ;अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन जो दादागिरी कर रहे हैं, ये समुद्र में सारी परमाणु शक्ति को फैंक दें तो हिन्दुस्तान भी फैंकने के लिए तैयार है। सबसे पहले फैंक देगा लेकिन जब तक ये पांच देश अपनी परमाणु शक्ति का नहीं करेंगे। तब तक अपने देश की रक्षा के लिए, उसके विकास के लिए सैन्य शक्ति को मजबूत करने के लिए जितना करना पड़ेगा, उतना हम करेंगे।

मेजर सिंह उबोक ;तनरतारन
    .....चन्द्रगुप्त मौर्य, विक्रमादित्य और उसके बाद के इतिहास पर नजर डालें, तो देखेंगे कि विदेशियों ने ही हिन्दुस्तान पर राज किया है। हजारों हिन्दुस्तानियों को रौंदते हुए वे सोमनाथ मंदिर तक पहुंचे। मैं पूछता हूं हिन्दुस्तान में क्या कमी थी कि हम उस वक्त उनको नहीं रोक सके? हममें एकता की भावना नहीं थी और छोटी-छोटी रियासतों में हिन्दुस्तान बंटा हुआ था। यदि आज एक हजार साल के इतिहास को उठाकर देखें, तो पायेंगे कि कितने ही वंशों ने बाहर से आकर हिन्दुस्तान पर राज किया। यह बात और है कि दक्षिण भारत में, राजस्थान में और बहुत सारी जगहों पर, जो उस समय देशभक्त हुए, उन्होंने विदेशी राज के खिलाफ तलवार उठाई। महाराष्ट्र में शिवाजी ने, राजपुताना में महाराणा प्रताप सिंह ने और पंजाब में गुरू गोविन्द सिंह ने तलवार उठाई और कहा कि यहां विदेशियों का राज नहीं रहने देंगे। एक लम्बा इतिहास है।’’

प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल
प्रौद्योगिकी में हम कभी पिछड़े नहीं रहेंगे

    ...बाबर का आना एक प्रमाण है, अंग्रेजों का आना दूसरा प्रमाण है। पुर्तगालियों का आना एक और प्रमाण है। अतः मैं अनुरोध कर रहा हूं कि यह सदन दृढ़ निश्चय करें और यह वचन दें कि ऐसा फिर कभी नहीं होगा। प्रौद्योगिकी में हम कभी पिछड़े नहीं रहेंगे। हमारी पराक्रमी सेनाओं, हमारे बहादुर बलों को नवीनतम प्रौद्योगिकी उपलब्ध करवायी जायेगी, जो भारत की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। हमने एक ऐतिहासिक सबक लिया है और इतिहास के इस पाठ को कभी नहीं भुलाना चाहिये। इसी कारण यह आवश्यक है कि हम जहां भी जाएं, इस बात का ध्यान रखें कि जब सांस्कृतिक स्तर पर हम अपने विचार खुले रख सकते हैं, जब हम अपनी सभ्यता का संदेश जन-जन तक फैला सकते हैं, तो हमें सुरक्षा स्तर पर भी अपने विचार खुले रखने चाहिए।’’

सुन्दर लाल पटवा : सावधानी
    ‘‘मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद कहते हैं, हमें कहा जाता है कि हम अपने व्यापार और वाणिज्य को पूर्ण रूप से खोल दें, लेकिन क्यों और किसके लिये खोलें? क्या इन दुष्ट सट्टेबाजों के लिए या उन अन्तर्राष्ट्रीय अराजकता फैलाने वाले तत्वों के लिए खोलें, जो हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट करके अंतर्राष्ट्रीय चालबाजों के समक्ष घुटने टेकने के लिए बाध्य करते हैं?
    इन्हीं स्वरों को तीखा करते हुए उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां विकासशील देशों के वाणिज्य और व्यवसाय को निगल गई, इसलिये उदारीकरण में सावधानी बरतनी चाहिए। स्वर्ण मृग भारत की पंचवटियों के इर्द गिर्द घूम रहा है और उसकी नई लीलाओं से भारत को सावधान रहना होगा।
    यह मलेशिया जैसे छोटे से देश के प्रधानमंत्री की समझ में आता है परन्तु दुर्भाग्य है कि हमारे महान चिदम्बरम् साहब को और हमारे महान निर्माता उदारीकरण वालों को कब समझ में आएगा, यह मैं नहीं जानता।’’

    हलांकी इस महान अधिवेशन ने देश की हर समस्या और हर कमजोरी पर विचार किया था, मगर यह 333 दिन की सरकार के जाने के बाद, नई सरकार के रूप में इस अधिवेशन के प्रमुख वक्ता अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार आई और उस सरकार ने देश को परमाणु सम्पन्न बनाने का महान कार्य किया।

    अर्थात हमें इस महान अवसर पर, संकल्प लेना होगा कि हम अपनी आजादी को अक्क्षुण्य बनाये रखने के लिए किसी तरह के अपने योगदान को हमेशा तत्पर रहेंगे।

- राधाकृष्ण मंदिर रोड़, डडवाड़ा, कोटा जंक्शन

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